gulzar shayari on ishq
रब ना करें इश्क की कमी किसी
को सताए प्यार करो उसी से
जो तुम्हें दिल की हर बात बताए
कोहरा सा बनकर मेरे दिल पे छा गए हो
तुम्हारे सिवाय कुछ दिखता ही नहीं !
इश्क़ ने हमे बेनाम कर दिया,
हर खुशी से हमे अंजान कर दिया,
हमने तो कभी नही चाहा की हमे
भी मोहब्बत हो लेकिन तुम्हारी एक नज़र ने
हमे नीलाम कर दिया
अपनों की महफिल में गैर भी हैं
इश्क के दुश्मन और भी हैं मैं तो चाहता हूँ
आपको मगर आपके चाहने वाले और भी हैं
जाने कब उतरेगा क़र्ज़ उसकी मोहब्बत का
हर रोज आँसुओं से इश्क की किस्त भरते हैँ
इश्क़ है तो शक कैसा
अगर नहीं है तो फिर हक कैसा
राख से भी आएगी खुशबू मोहब्बत की
मेरे खत तुम सरे आम जलाया ना करो
ऐ इश्क मुझे अब और जख्म चाहिये !!
मेरी शायरी मे अब वो बात नही रही !!
तेरे इश्क़ में हर इम्तिहान दे देंगे हमे है
तुमसे मोहब्बत सारी दुनिया से कह देंगे
इश्क सूफी है ना मुफ्ती है ना आलीम है
ये जालीम है बहूत जालीम है फकत जालीम है
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