ibtida e ishq shayari
हम इस कदर तुम पर मर मिटेंगे
तुम जहाँ देखोगे तुम्हे हम ही दिखेंगे
इश्क़ अगर ख़ाक ना करे
तो ख़ाक इश्क़ हुआ
आधे से कुछ ज्यादा है पूरे से कुछ कम…
कुछ जिंदगी कुछ गम कुछ इश्क कुछ हम
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने
इश्क में इसलिए भी धोखा खानें लगें हैं लोग
दिल की जगह जिस्म को चाहनें लगे हैं लोग
मुक़म्मल ना सही अधूरा ही रहने दो
ये इश्क़ है कोई मक़सद तो नहीं
इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
सच्चे इश्क में अल्फाज़ से ज्यादा
एहसास की एहमियत होती है
चाहने की वजह कुछ भी नहीं बस इश्क
की फितरत है बेवजह होना
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
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