अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार !!
पीले पत्ते तलाश करती है !!

जब किसी की रूह में उतर जाता है मोहब्बत का समंदर !!
तब लोग जिन्दा तो होते हैं लेकिन किसी और के अंदर !!
ये हमारी मोहब्बत है या कुछ और ये तो पता नही !!
लेकिन जो तुमसे है वो किसी और से नही !!
ज़ाहिद ने मेरा हासिल-ए-ईमान नहीं देखा !!
रुख पर तेरी ज़ुल्फों को परेशान नहीं देखा !!
इरादा था जी लूँगा तुझ से बिछड़ कर !!
गुज़रता नहीं इक दिसम्बर अकेले !!
सर्द ठिठुरी हुई लिपटी हुई सरसर की तरह !!
ज़िंदगी मुझ से मिली पिछले दिसम्बर की तरह !!
ना कैद में लेता है ना रिहाई देता है !!
इक शख्स हर जगह दिखाई देता है !!
हमारी हैसियत का अंदाज़ा तुम ये जान के लगा लो !!
हम कभी उनके नहीं होते जो हर किसी के हो गए !!
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इससे ज़्यादा तुझे और कितना करीब लाऊँ मैं !!
कि तुझे दिल में रख कर भी मेरा दिल नहीं भरता !!
अब हम भी कुछ मोहब्बत के गीत गुनगुनाने लगे हैं !!
जब से वो हमारे ख्वाबो में आने लगे हैं !!
तेरे ख़त आज लतीफ़ों की तरह लगते हैं !!
ख़ूब हँसता हूँ जहाँ लफ़्ज-ए-वफ़ा आता है !!
लाख अदाएं हैं लाख की उसकी !!
और करोड़ों की है हँसी उसकी !!
आप के बाद हर घड़ी हम ने !!
आप के साथ ही गुज़ारी है !!
चाँद से चाँदनी होती है सितारों से नही !!
और प्यार एक से होता है हजारो से नही !!
ये तुमसे किसने कहा तुम इश्क का तमाशा करना !!
अगर मोहब्बत करते हो हमसे तो बस हल्का सा इशारा करना !!
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