gulzar ishq shayari
इश्क ने हमसे कुछ ऐसी साजिशें रची हैं
मुझमें मैं नहीं हूँ अब बस तू ही तू बसी है
चलते तो हैं वो साथ मेरे
पर अदाज देखिए जैसे की इश्क
करके वो एहसान कर रहें है
मेरे इश्क़ से मिली है तेरे हुस्न को ये शौहरत
तेरा ज़िक्र ही कहाँ था मेरी दीवानगी से पहले
खुशबू से है वो जब आसपास भी नहीं होते
फिर भी महसूस होते है।
कुछ तो शराफत सीख ले ऐ इश्क़ शराब से !!
बोतल पे लिखा तो होता है मैं जानलेवा हूँ !!
इश्क का दस्तूर ही ऐसा है
जो इस को जन लेता है
ये उसकी जन लेता है
बरसों से कायम है इश्क़ अपने उसूलों पर
ये कल भी तकलीफ देता था
ये आज भी तकलीफ देता है
इश्क में जिसने भी बुरा हाल बना रखा है
वही कहता है अजी इश्क में क्या रखा है
बंद कर दिए हैं हमने तो दरवाजे इश्क के
पर कमबख़्त तेरी यादें तो दरारों से ही चली आई
इश्क की गहराईयों में खूबसूरत क्या है !!
एक मैं हूँ एक तुम हो और ज़रुरत क्या है !!
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